पाया मंगल जिनशासन, पालेंगे हम अनुशासन।। टेक।।
काम समय पर सभी करेंगे, भेदज्ञान हर समय धरेंगे।
अप्रमत्त’ श्री जिनशासन ।।पालेंगे ।। 1।।
वस्तु यथा स्थान धरें, स्वच्छ व्यवस्थित कार्य करें।
तजें प्रमाद दुःख कारण ।। पालेंगे. ।। 2।।
हेयादेय विवेक विचार, पालें सम्यक् यत्नाचार ।
हों परिणाम सहज पावन ।। पालेंगे. ।। 3 ।।
उत्तेजित होवें न कदा, शान्त चित्त हो सहज सदा।
सदा समाधिमय जीवन ।। पालेंगे. ॥ 4 ॥
गहरे हों संस्कार अहा, भासे ज्ञाता रूप सदा ।
कभी न लायें कर्त्तापन। ।।पालेंगे. ।। 5।।
तजें विकल्प अकिंचित्कर, पंचमभाव भजें हितकर ।
है निज भाव तरण तारण ।। पालेंगे. ।।6 ||
उक्त रचना में प्रयुक्त हुए कुछ शब्दों के अर्थ-
१. अप्रमत्त= प्रमाद रहित
२ हेयादेय= छोड़ने व ग्रहण करने योग्य
३. यत्नाचार =विवेक पूर्ण आचरण
४. अकिंचित्कर =बेकार, निरर्थक
पुस्तक का नाम:" प्रेरणा "
पाठ क्रमांक: ०३
रचयिता: बाल ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन् ’