मंगलाचरणों के हो मंगल, सर्वोत्तम त्रैलोक्य शरण
आमंत्रण मुक्ति नगरी के, अरिहंत सिद्ध साधू भगवन!
भवितव्य काल लब्धि आयी, जग की चिन्तायें बिसराईं
चेतन पा तन भूल गये, छवि वीतरागता अब भायी ।।
परमेष्ठी मुझको तुम वर दो, वीतराग तुमसा ही कर दो
चरण शरण शरणागत को दे, मंगल आचरणों से भर दो ।।
निज स्वभाव की सुधि आयी, पुरुषार्थ रश्मियाँ हिय छायीं
आतम पा मिथ्यातम भूले, वीतरागता अब भायी ।। परमेष्ठी मुझको…
अर्हन्तो भगवन्त इन्द्रमहिताः सिद्धाश्च सिद्धीश्वरा
आचार्याः जिनशासनोन्नतिकराः पूज्या उपाध्यायकाः
श्रीसिद्धान्तसुपाठकाः मुनिवरा रत्नत्रयाराधकाः
पञ्चैते परमेष्ठिनः प्रतिदिनं कुर्वन्तु ते मंगलम् ।।
पूज्य परम परमेष्ठी प्रभुवर, प्राणनाथ पावन परमेश्वर ।
पुण्यपुरुष प्रियतम पियूषधर, शांतिदूत हे विश्व हितंकर!
अर्हम सिद्ध सूरि ओ पाठक!, साधु ऋषि यति मुनि ओ साधक!
मंगलमय मम मोह-विमुक्ति, कर देगी यह मंगल-भक्ति ।।
नाम तुम्हारा मंत्र अनाहत, रत्नत्रय के हे रत्नाकर
मंगल उत्तम हे शरणाकर!, धन्य हुए हम दर्शन पाकर ।। परमेष्ठी मुझको…
यो गर्भावतरोत्सवो भगवतां जन्माभिषेकोत्सवो ,
यो जातः परिनिष्क्रमेण विभवो यः केवलज्ञानभाक्
यः कैवल्यपुर-प्रवेश-महिमा सम्पादितः स्वर्गिभिः
कल्याणानि च तानि पञ्च सततं कुर्वन्तु ते मंगलम् ।।
सोलह कारण भावना सुमिरण, सोलह स्वप्नों का दिग्दर्शन ।
रत्न राशि का मधुरिम सावन, रत्नकुक्षी में आये भगवन ।।
धन्य अहो! इंद्रासन कंपन, विस्मित शांति, पुलकित त्रिभुवन ।
धन्य प्रसूति! धन्य जन्मक्षण! तारणहार पधारे आँगन!
नाथ तुम्हारा जन्म महोत्सव, ले आया वह स्वर्ग धरा पर ।
मेरु सुदर्शन, पर्शन पाकर , धन्य हुए हम दर्शन पाकर ।। परमेष्ठी मुझको…
कैलाशे वृषभस्य निर्वृतिमही वीरस्य पावापुरे
चम्पायां वसुपूज्यसज्जिनपतेः सम्मेदशैलेऽर्हताम्
शेषाणामपि चोर्जयन्तशिखरे नेमीश्वरस्यार्हतः ,
निर्वाणावनयः प्रसिद्धविभवाः कुर्वन्तु ते मंगलम् ।।
क्षणभंगुर संसार भोग तन, बारह विधि वैराग्य चिंतवन ।
लोकान्तिक करते अनुमोदन, नमें सिद्ध, निर्ग्रंथ देह मन ।।
त्यागा वैभव धारा संयम, गुप्त हुए भीतर शुद्घातम ।
धन्य आहार प्रचुर संवेदन, शुक्ल ध्यान श्रेणी आरोहण ।।
घाती कर्म को चूर चूर कर, उदित हुआ कैवल्य सूर्य तब ।
समवशरण शत इंद्र परिकर, तृषित भव्यों की मन भूमि पर ।।
उर्वरा हुई बाँझ ये धरती, दुःखों की अब साँझ है ढलती ।
योग निरोध करेंगे स्वामी, मुक्तिप्रिया वरेंगे स्वामी ।।
अंतरिक्ष ओंकार मेघ भर, आत्म-सिद्धि का साधन पाकर
मुक्तिमार्ग सत्तीर्थ में आकर, धन्य हुए हम दर्शन पाकर -3
बोलो अरिहंतों की जय ! बोलो सिद्ध प्रभु की जय !
बोलो आचार्यों की जय ! बोलो उपाध्याय की जय !
बोलो सर्व साधु की जय!