परमानंद स्तोत्र हिन्दी पद्यानुवाद | Parmanand Stotra Hindi Padyanuwad

परमानन्द स्तोत्र (हिन्दी पद्यानुवाद)

आचार्य अकलंकदेव विरचित

परमानन्द स्वरूप जो निर्विकार बिन रोग।
ध्यानहीन नहिं देखते देह-स्थित निजरूप ॥१॥

ज्ञानामृत सागर अहो सुख अनन्त सम्पन्न।
बल अनन्तमय है सदा दर्शनीय परमात्म ॥२॥

निर्विकार निर्बाध है सर्वसंग से शून्य।
चेतन लक्षण शुद्ध है परमानन्द स्वरूप ॥३॥

उत्तम चिन्ता आत्म की मध्यम पर-उपकार।
अधम काम चिन्ता कही अधमाधम पर-भार ।।४।।

निर्विकल्पता से हुआ ज्ञानामृत उत्पन्न।
भर विवेक अंजुलि अहो पीते ज्ञानी सन्त ॥५॥

जीव सदा आनन्दमय जो जाने वही ज्ञानि।
परमानन्द पिपासु वह सेवे सदा निजात्म ॥६॥

कमल-पत्र पर नीर ज्यों रहे सर्वदा भिन्न।
वैसे यह शुद्धात्मा रहे देह में भिन्न ॥७॥

द्रव्यकर्म-मल से रहित भावकर्म से शून्य।
निश्चय से यह आत्मा है नोकर्म विहीन ॥८॥

निज-घट में यह आत्मा वर्ते ब्रह्मानन्द ।
ध्यानहीन नहिं देखते जैसे रवि जन्मन्ध ॥९॥

भव्यजीव ध्याते सदा चित को कर एकाग्र ।
तत्क्षण ही अनुभव करें चमत्कार निज आत्म ॥१०॥

ध्यानशील मुनि नियम से होते दुख से मुक्त।
लहें शीघ्र परमात्मपद क्षण में होते मुक्त ॥११॥

आनन्दमय परमात्म में नहिं संकल्प-विकल्प।
बसते सदा स्वभाव में योगी जाने तत्त्व ॥१२॥

निराकार निरोग है चिदानन्दमय शुद्ध ।
सर्व परिग्रह से रहित सुख अनन्त सम्पन्न ॥१३।।

संशय नहिं यह आत्मा निश्चय लोक प्रमाण।
तन प्रमाण व्यवहार से कहते श्री जिनराज ॥१४॥

निर्विकल्प अनुभूति से जिस क्षण देखे शुद्ध।
स्वस्थ चित्त होकर सुथिर विभ्रम होता नष्ट ॥१५॥

परमब्रह्म वह ही अहो जिन-पुंगव वह आत्म।
परमतत्त्व भी है वही, वही परम गुरु आत्म ॥१६॥

वही सर्व कल्याणमय वह ही तप उत्कृष्ट ।
परमध्यान भी है वही, वह ही है परमात्म ॥१७॥

वही सर्वकल्याणमय वही परमसुख पात्र।
वही शुद्ध चिद्रूपमय वही परमशिव आप्त ॥१८॥

वही परम आनन्दमय वह सुखदायक सार ।
वही परम चैतन्यमय वह ही गुण भण्डार ॥१९॥

परमाह्लाद स्वरूप जो राग-द्वेष से शून्य।
पण्डित वह जो जानता देह स्थित अर्हन्त ॥२०॥

निराकार निर्लेप हैं निवसें नित्य स्वरूप।
निर्विकार निर्मल अहो सिद्ध अष्टगुण युक्त ॥२१॥

उत्तम गुण प्राप्त्यर्थ जो सिद्धसमान निजात्म।
पण्डित वह जो जानता सहजानन्द चिदात्म ॥२२॥

यथा स्वर्ण पाषाण में और दूध में घीव।
तिल में रहता तेल ज्यों तन में रहता जीव ॥२३॥

शक्तिरूप में वर्तती ज्यों ईंधन में अग्नि।
वैसे तन में आत्मा जो जाने पण्डित ।। २४।।

हिंदी अनुवाद: पं. अभय कुमार जैन

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