पानी सदा छानकर लेना और जीवाणी विधि से देना।
बाल्टी में इक कड़ा लगाना, नहीं अनछना जल फैलाना।। 1 ।।
मोटा दुहरा छन्ना साफ, सावधान हो छानो आप।
जहाँ कूप से पानी लाओ, वहीं जीवाणी तुम पहुँचाओ ।। 2 ।।
तभी प्रयोजन होगा सिद्ध, सत्पुरुषों का चिह्न प्रसिद्ध ।
हिंसा से तुम तभी बचोगे, रोगों से भी दूर रहोगे। 3।।
प्यासे को तड़फाओ ना, पानी व्यर्थ बहाओ ना।
ऐसी क्रिया सदा हितकारी, हो प्रभावना मंगलकारी ॥ 4 ॥
उक्त रचना में प्रयुक्त हुए कुछ शब्दों के अर्थ
१. जीवाणी = बिलछानी
पुस्तक का नाम:" प्रेरणा " ( पुस्तक में कुल पाठों की संख्या =२४)
पाठ क्रमांक: १३
रचयिता: बाल ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन् ’