जिनागम का कोई भी कथन स्याद्वाद शैली से समझने का प्रयास करना ।
एकांत रूप से कोई भी कथन को समझने से नियम से मिथ्यात्व पुष्ट होगा।
मूल में कोई भी कार्य 5 समवाय पूर्वक होगा।
यहां सनयकदर्शन के संदर्भ में
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– भव्यतव्य (क्षमता) = संज्ञी पंचेंद्रिय पना
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– पुरूषार्थ (महनत) = पर से उपयोग हटाकर आत्मा में उपयोग लगाना
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– उपादान (स्वभाव) = सुखी होना ही जीव का स्वभाव है।मोह यह विपरीतता है दुख है सम्यक्त्व जीव का स्वभाव है।पुद्गल को सम्यक्त्व नही होगा।
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– निमित्त (बाह्य कारण) = (बाह्य पर पदार्थ) इसमे प्रेरक = (पंचकल्याणक,देवदर्शन,मुनिराज का उपदेश,कोई वैराग्य घटना होना) या उदासीन =लोक के अग्रभाग में विराजमान सिद्ध भगवान
कोई भी निमित्त हो सकता है।
- – काललब्धि (नियति) = उसी समय यह कार्य होना था।
कथन शैली में कोई कारण को मुख्य करके कथन किया जाता है परंतु गौण रूप में अन्य कारण भी विद्यमान है।
मूल में
- आज्ञा आदि सम्यक्त्व 10 भेदों के लक्षण - इसमे कई में बहिरंग निमित्त को मुख्य करके कथन किया जाता है।