Panchkalyanak Mahotsav

पंचकल्याणक सम्यकदर्शन का कारण है यह किस शास्त्र की कौनसी गाथा है? क्या यह सच है? बिना भेदज्ञान और पुरुषार्थ के बिना सिर्फ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में जुड़ने से सम्यकदर्शन हो सकता है? यह सूत्र गुमराह करनेवाला नहीं है?

जिनागम का कोई भी कथन स्याद्वाद शैली से समझने का प्रयास करना ।
एकांत रूप से कोई भी कथन को समझने से नियम से मिथ्यात्व पुष्ट होगा।

मूल में कोई भी कार्य 5 समवाय पूर्वक होगा।

यहां सनयकदर्शन के संदर्भ में

  1. – भव्यतव्य (क्षमता) = संज्ञी पंचेंद्रिय पना

  2. – पुरूषार्थ (महनत) = पर से उपयोग हटाकर आत्मा में उपयोग लगाना

  3. – उपादान (स्वभाव) = सुखी होना ही जीव का स्वभाव है।मोह यह विपरीतता है दुख है सम्यक्त्व जीव का स्वभाव है।पुद्गल को सम्यक्त्व नही होगा।

  4. – निमित्त (बाह्य कारण) = (बाह्य पर पदार्थ) इसमे प्रेरक = (पंचकल्याणक,देवदर्शन,मुनिराज का उपदेश,कोई वैराग्य घटना होना) या उदासीन =लोक के अग्रभाग में विराजमान सिद्ध भगवान

कोई भी निमित्त हो सकता है।

  1. – काललब्धि (नियति) = उसी समय यह कार्य होना था।

कथन शैली में कोई कारण को मुख्य करके कथन किया जाता है परंतु गौण रूप में अन्य कारण भी विद्यमान है।

मूल में

  1. आज्ञा आदि सम्यक्त्व 10 भेदों के लक्षण - इसमे कई में बहिरंग निमित्त को मुख्य करके कथन किया जाता है।
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