पंच-परमेष्ठी वंदना
अरहन्त सिद्ध सूरि उपाध्याय साधु सर्व,
अर्थ के प्रकाशी मांगलिक उपकारी हैं |
तिनको स्वरूप जान राग तैं भई जो भक्ति,
काय को नमाय स्तुति को उचारी है ||
धन्य-धन्य तुमही से काज सब आज भये,
कर जोरि बार-बार वन्दना हमारी है |
मंगल कल्याण सुख ऐसो हम चाहत हैं,
होहु मेरी ऐसी दशा जैसी तुम धारी है ||