पानी में मीन पियासी। Paani me meen Pyasi

पानी में मीन पियासी, मोहे रह-रह आवे हांसी रे ॥
ज्ञान बिना भव-बन में भटक्यो, कित जमुना कित काशी रे ॥ १ ॥
पानी में मीन पियासी. ॥
जैसे हरिण नाभि किस्तूरी, वन-वन फिरत उदासीरे ॥ २ ॥
पानी में मीन पियासी. ॥
‘भूधर’ भरम जाल को त्यागो, मिट जाये जम की फांसी रे ॥ ३ ॥
पानी में मीन पियासी.॥

अर्थ-
पानी में रहकर भी मछली प्यासी है, ऐसा देख-देखकर मुझे हँसी आती है। अर्थात् जीव स्वयं ज्ञानवान होने पर भी उससे अनजान बना हुआ है और उसे बाहर खोजता है।

ज्ञान के बिना अज्ञानी होकर वह संसाररूपी जंगल में भटक रहा है, कभी जमुना नदी की ओर तो कभी काशी को, परन्तु वह आत्मज्ञान के तीर्थस्थान के महत्त्व को नहीं समझ रहा।

जैसे हरिण को नाभि में ‘कस्तूरी’ होती हैं परन्तु वह यह तथ्य न जानने के कारण उससे अनभिज्ञ होकर जंगल जंगल घूमकर उस सुगन्ध की तलाश करता रहता है।

भूधरदास जी कहते हैं कि यह भ्रम है, इसे छोड़ो, अपने को जानो तो जन्म- जन्मान्तर में लगनेवाली यमराज की फाँसी से अर्थात् जन्म मरण से छुटकारा हो सकता है।

रचयिता: पंडित श्री भूधरदास जी
सोर्स: भूधर भजन सौरभ