ओ मेरी बिटिया रानी, बहुत विनय से पढ़ो जिनवाणी। O meri bitiya rani, bhut vinay se padho jinvani

ओ मेरी !ओ मेरी बिटिया रानी,
बहुत विनय से पढ़ो जिनवाणी।
ओ मेरी! ओ मेरी बिटिया रानी,
बहुत विनय से सुनो जिनवाणी।
माता पिता हम सच्चे नहीं हैं,
सच्चे पिता तो अरिहंत ही हैं,
माता तो सच्ची है जिनवाणी,
ओ मेरी!ओ मेरी! बिटिया रानी||1||
देखो इस जग में सार नहीं है,
सुख नहीं और दुःख का पार नहीं है,
तुझको तो है बस मुक्ति पानी,
ओ मेरी! ओ मेरी! बिटिया रानी||2||
मात्र शील से ही सब सुन्दर,
प्राणों से भी प्रिय शील है सुखकर,
शील धर्म की कोई न सानी,
ओ मेरी!ओ मेरी!बिटिया रानी||3||
भगवान बनने जन्मी है तू,
जग के प्रपंचों में फ़सना नहीं तू,
इनमें नहीं है सुख की निशानी,
ओ मेरी!ओ मेरी! बिटिया रानी||4||
किसी के साथ की रखना न आस,
जिनशासन है तेरे पास,
उसकी शरण में बनना तू ज्ञानी,
ओ मेरी!ओ मेरी! बिटिया रानी||5||
कोई भी कठिनाई जब आये,
पञ्च प्रभु ही तुझे याद आये,
समता धरे तू सतियों समानी,
ओ मेरी!ओ मेरी! बिटिया रानी||6||
तेरा प्रभु तुझमें ही रहता,
बाहर से कुछ भी नहीं मिलता,
हो आर्यिका सम पवित्र जिन्दगानी,
ओ मेरी!ओ मेरी! बिटिया रानी||7||
ओ मेरी!ओ मेरी!बिटिया रानी,
बहुत विनय से पढ़ो जिनवाणी।
ओ मेरी! ओ मेरी ! बिटिया रानी,
बहुत विनय से सुनो जिनवाणी।।

रचयिता:- ज्ञाता सिंघई (सिवनी)

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