Niyat(fixed) & Aniyat(unfixed)

नियति और अनियति, ये दोनों ही वस्तु के धर्म है। ये परस्पर विरोधी प्रतीत होने वाले तथा अनेकांतात्मक वस्तु के परिणमन स्वभाव का ज्ञान कराने वाले धर्म युगल है। परस्पर विरोधी जैसे तो ये मात्र प्रतीत होते है, परंतु वास्तविकता में ये परस्पर विरोधी नहीं अपितु एक दूसरे के पूरक ही है। उसी प्रकार जिस प्रकार नित्य और अनित्य धर्म एक ही वस्तु में एक साथ विद्धमान होते है। और वस्तु को अनेकांतात्मक स्वीकारने वाले स्यादवादियो को यह बात सहज स्वीकार है।

प्रस्तुत गाथा में आचार्यदेव ने नियति एकांत (अनियति निरपेक्ष सर्वथा नियति का) का एकांत मिथ्यात्व होने से निषेध किया है, नियति धर्म का ही निषेध नहीं कर दिया।
And so the provided gatha reference is not against Niyati but it is against niyati ekanta.
(The same has been said and duly highlighted in the pics you added)

ये तो वस्तु का स्वरूप है, इससे वीतराग भाव प्रगट होता है। कोई यदि औषधि सेवन से भी रोगी हो जाए, तो उसमें औषधि का तो दोष नहीं है, वहां तो उसे सेवन करने वाले की ही कोई चूक है। अतः अपना रोग जानकर उपयुक्त औषधि का उपयुक्त रीति से सेवन करना ही रोग दूर करने का उपाय है। ( रोग - अज्ञान और मोह, औषधि - 4 अनुयोगमय जिनवाणी )

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