निजातम ध्याऊँगा भवसागर होने पार पार हो जाऊँगा।
मैं निज शुद्धातम ध्याऊँगा।।टेक।।
कुन्दकुन्द देव ने जो, दिया समयसार था।
पूज्य गुरुदेव श्री को, मिला समयसार था।।
उसे ही पाऊँगा, भव सागर होने पार पार हो जाऊँगा।।१।।
ग्रन्थ समयसार ही, मुक्ति का मार्ग है।
वीतराग रूप मेरा, परम समयसार है।।
मोक्षपद पाऊँगा, भवसागर होने पार-पार हो जाऊँगा।।२।।
कितना सुन्दर, अपना ये मन्दिर।
मनहर प्रतिमाएँ हैं, जिसके अन्दर।।
देख शान्त मुद्रा, कष्ट मिट जाते हैं।
देख भव्यजन इनको, परम शान्ति पाते हैं।।
सिद्धपद पाऊँगा, संसार से होने पार-पार हो जाऊँगा।।३।।
निग्रंथों गुरुओं से ,मिली दिव्य देशना।
भाव नोकर्म, से रहित आत्मा।।
जिनवाणी माता ने, मार्ग हमें बताया।
मोक्षार्थी भव्यों को, अंतर में भाया।।
मुनि बन जाऊँगा, नहिं डूबँगा मँझधार-पार हो जाऊँगा।।४।।