निज शुद्धातम को ध्याओ, अक्षय प्रभुता प्रगटाओ / Nij Shudhaatm ko Dhyaao, Akshay Prabhuta Pragataoo

निज शुद्धातम को ध्याओ, अक्षय प्रभुता प्रगटाओ ॥ टेक ॥

तू व्यर्थ ही बोझा ढोवे, जो होना हो सो होवे।
सम्यक विवेक प्रगटाओ, निर्भार भावना भाओ ॥ 1 ॥

पर की सब चिन्ता छोड़ो, आराधन में चित जोड़ो ।
कर्तृत्व विकल्प नशाओ, भवितव्य भावना भाओ ॥ 2 ॥

दुःखकारी अध्यवसाना, नहिं अर्थ क्रिया कुछ आना।
क्यों अपन बन्ध बढ़ाओ, रोओ अरु व्यर्थ रुलाओ ॥ 3 ॥

हो बाह्य व्यवस्था जो भी, उदयानुसार सो ही होवे ।
अब व्यर्थ नहीं अकुलाओ, समता धरि कर्म नशाओ ॥ 4 ॥

पर का कुछ दोष नहीं है, तेरा पुरुषार्थ यही है ।
प्रभु भक्ति में मन लाओ, वैराग्य भावना भाओ ॥ 5 ॥

नित वस्तु स्वरूप विचारो, निज ज्ञायक भाव निहारो ।
निरपेक्ष रहो सुख पाओ, अपने में ही रम जाओ ॥ 6 ॥

रचयिता - बाल ब्रह्मचारी श्री रवीन्द्र जी आत्मन