निज आत्मा का ज्ञान अरु निज तत्व | nij aatma ka gyan aru nij tattva

निज आत्मा का ज्ञान अरु निज तत्त्व का श्रद्धान कर;
निज आत्मा में लीन होकर मुक्तिपथ पाया प्रवर॥

कैवल्य किरणों से प्रकाशित आत्म रवि है चमकता;
जहाँ लोक और अलोक का सम्पूर्ण वैभव झलकता ॥१॥

अनन्त दृग अरु ज्ञान से षट् द्रव्य-गुण-पर्याय का;
सामान्य और विशेष अवभासन समस्त पदार्थ का ।।२।।

नित सुख अतीन्द्रिय भोगते हे योग बिन योगीश तुम;
निज बल अनन्तानन्त से हे गणधरों के ईश तुम ।।३।।

हे मुक्तिपथ नायक महा-नायक समूची दृष्टि के;
हे कर्मभूभृत् के विदारक तुम्हीं हो वर दृष्टि के ॥४॥

यह अर्घ्य है अर्पित प्रभो अनर्थ्य पद की कामना;
भी नहि रहे अब वृत्ति में तुम सम बनू निष्कामना ॥५॥

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