नेमी कुंवर को देखो ये क्या हो गया | nemi kuwar ko dekho ye kya hogya

नेमी कुंवर को देखो ये क्या हो गया?
लाये थे बारात और वैराग्य हुआ॥ टेक॥

कैसी ये सावन की घड़ी है, राग विराग में जंग छिड़ी है।
कहीं पर गीत कहीं पर बाजे, नेमी प्रभुजी रथ में विराजै ॥
महलों से राजुल ने देखा, नेमी प्रभु ने रथ को रोका।
सारथी से भेद जो पूछा, उन पशुओं को किसने रोका ?
दुखमय है इनकी किलकारी, कौन है इन पर अत्याचारी।
सारथी ने भेद जो खोला, नेमी प्रभु का हिल गया चोला।
राग रंग में इतनी हिंसा, पालँगा मैं परम अहिंसा।
जल गया सारा राग ज्ञान की अग्नि में
चल दिये नेमी कुमार, विराग की बस्ती में ॥१॥

मन में भावना बारह आई, लौकान्तिक ने महिमा गायी। |
धन्य प्रभु है आपकी बुद्धि, आत्मज्ञान से करो विशुद्धि ।
राग-द्वेष दुखमय संसारा, ज्ञान विराग महा सुखकारा।
एक अकेलापन भा जाता, पूर्णानन्द स्वयं का ज्ञाता।
नेमी प्रभु का मन अंतर में खो गया ॥२॥

प्रथम अनित्य भावना भाई, आतम नित्य सदा सुखदाई।
संयोगों में शरण नहीं है, शुद्धात्म ही परम शरण है।
पर से भिन्न सदा अविनाशी चेतनमय चैतन्य विलासी
देह अशुचिता हमने जानी, स्व पर भेद के हम श्रद्धानी
पुण्य-पाप तो दु:ख के घर हैं, संवर निज आतम का घर है।
शुद्धि की वृद्धि में निर्जरा होती है
ध्यान अग्नि ही कर्म कालिमा धोती है ॥३॥

सर्व परिग्रह उन ने छोड़ा, जिन दीक्षा से नाता जोड़ा
मन दर्पण तो प्रगट हुआ है, सुख शान्ति आनन्द हुआ है।
राजुल ने भी मन में विचारी, आतमज्ञान महा सुखकारी
नेमी प्रभु का मन अपने में खो गया II४ ॥

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