नज़र लगने का क्या प्रावधान है? | Nazar lagne ka kya pravdhan?

क्या जिनागम में नज़र लगने का प्रावधान है अगर है तो क्या उपाय हैं अगर नहीं तो फिर नज़र लगने को इतना क्यों महत्त्व देकर सब कुछ क्रियाएं करने लगते हैं? विस्तार से चर्चा करें व संभव हो तो आगम प्रमाण भी प्रस्तुत करें।

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@Sayyam @jinesh @Sulabh @anubhav_jain @panna @Sanyam_Shastri

में ऐसी कोई क्रिया से परिचित नहीं हूं जो नजर लगने से बचने के लिए की जाती हो।

कोई अच्छे कार्य के लिए विघ्न रहित समाप्ति के लिए शुभ मुहूर्त देखने के विकल्प तो आचार्य को भी आते है। किंतु सभी को आते है या हर बार आते है ऐसा भी नही। और यह तो केवल विकल्प है मान्यता में तो उन्हें कोई इष्ट अनिष्ट बुद्धि नही। ऐसा व्यवहारनय ज्ञानियों को होता है। किंतु किसीकी नजर लगने जैसी एक द्रव्य अन्य द्रव्य का कुछ करे ऐसी कर्ता बुद्धि तो सम्भव नही।

और यह प्रत्यक्ष अनुभवगम्य है कि साता के उदय के समय कोई भी नजर लगने जैसा नही लगता। उसका पुण्य प्रबल है तो कोई किंतना भी उसे कोसे उसका कुछ भी बिगड़ता नही। यह तो असाता के उदय में ऐसा भ्रम हो जाता है कि नजर लगी है।

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किसी काम के अकारण बिगड़ने के कारण निधत्ति-निकाचित कर्म भी माने जा सकते हैं।

बाकी इसके लिए कुछ करने से कोई उपाय निकल सकता होता तो इन्हें ये संज्ञाएँ न मिली होतीं।:joy:

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