नवदेवता पूजन | Navdevta Pujan

नवदेवता पूजन
स्थापना

अरि चार घाति विनाश कर, अरहंत पद को पा लिया |
पुरुषार्थ प्रबल कियो प्रभो, मुक्तिरमा को वर लिया ||
अरहंत पथ पर चल रहे, आचार्य पद वन्दन करूं |

उवज्झाय साधू श्रेष्ठ पद का, भक्ति से अर्चन करूं ||1||
जिन धर्म आगम चैत्य चैत्यालय शरन को पा लिया |
भव सिन्धु पार उतारने, नौका सहारा ले लिया ||
यह भावना मेरी प्रभो, मं ज्ञान महल पधारिये |
निज सम बना लीजे मुझे, जिनराज पदवी दीजिये ||2||

(दोहा)
सुख दाता नव देवता, तिष्ठो हृदय मंझार |
भावों से आह्वाहन करूं, करो भवोदधि पार ||3||

ॐ ह्रीं अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुजिनधर्मजिनआगमजिनचैत्यचैत्यालयसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट आह्वाह्न्म |
ॐ ह्रीं अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुजिनधर्मजिनआगमजिनचैत्यचैत्यालयसमूह! अत्र तिष्ठ: ठ: ठ: स्थापनम |
ॐ ह्रीं अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुजिनधर्मजिनआगमजिनचैत्यचैत्यालयसमूह! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट सन्निधिकरणम |

द्र्व्यार्पण

जिनको माना अपना, उनसे ही दुख पाया |
फिर भी क्यों राग किया, त्यह समझ नहीं आया ||
यह राग की आग मिटे, ऐसा जल दो स्वामी |
नव देव शरण आया, शरणा दो जगनामी ||1||

ॐ ह्रीं अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुजिनधर्मजिनआगमजिनचैत्यचैत्यालयेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा |

प्रभो! काल अनादि से, भव का संताप सहा |
अब सहा नहीं जाता, यह मेटो द्वेष महा ||
इस द्वेष की ज्वाला को, अब शांत करो स्वामी |
नव देव शरण आया, शरणा दो जगनामी ||2||

ॐ ह्रीं नवदेवेभ्यो भवातापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा |

जिसको मैंने चाहा, सब नश्वर है माया |
जिस तन में हूँ रहता, क्षणभंगुर है वह काया ||
क्षत विक्षत जग सारा, अब जाऊं कहाँ स्वामी |
नव देव शरन आया, शरणा दो जगनामी ||3||

ॐ ह्रीं नवदेवेभ्यो अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान निर्वपामीति स्वाहा ।

इस काम लुटेरे ने, आतम धन लूट लिया |
मैं मौन खड़ा निर्बल, बस तेरा शरण लिया ||
विश्वास मुझे तुम पर, आतम बल दो स्वामी |
नव देव शरण आया, शरणा दो जगनामी ||4||

ॐ ह्रीं नवदेवेभ्य: कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।

इस क्षुधा रोग से मैं, प्रभुवर लाचार रहा |
व्यंजन की औषध खा, न कुछ उपचार हुआ ||
प्रभु तू हि है सहारा, यह रोग नशे स्वामी |
नव देव शरण आया, शरणा दो जगनामी ||5||

ॐ ह्रीं नवदेवेभ्य: क्षुधारोगविनाशनाय नेवैद्यम निर्वपामीति स्वाहा ।

पर तत्व प्रशंसा में, महिमा पर की आयी |
नर तन में रहकर भी, निज की सुधा ना आई ||
अब ज्ञान ज्योति प्रगटे, आशीष मिले स्वामी |
नव देव शरण आया, शरणा दो जगनामी ||6||

ॐ ह्रीं नवदेवेभ्यो मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।

कर्मों की आंधी में, चेतन गृह बिखर गया |
आया अब दर तेरे, निज आतम निखर गया ||
शुभ ध्यान अनल में ही, वसु कर्म जले स्वामी |
नव देव शरण आया, शरणा दो जगनामी ||7||

ॐ ह्रीं नवदेवेभ्यो अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।

पापों का बीज बोया, कैसे शिव फल पाऊं |
तप धारूं कर्म नशे, तब सिद्धालय पाऊं ||
मुझे पास बुला लेना, यह अरज सुनो स्वामी |
नव देव शरण आया, शरणा दो जगनामी ||8||

ॐ ह्रीं नवदेवेभ्यो मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ।

वसुकर्मों ने मिलकर, दिन-रात जलाया है |
गुरुदेव कृपा पाकर, यह अर्घ्य बनाया है ||
यह पद अनर्घ्य अनमोल, हो प्राप्त मुझे स्वामी |
नव देव शरण आया, शरणा दो जगनामी ||9||

ॐ ह्रीं नवदेवेभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

जयमाला

(दोहा)
नव देवों की भक्ति से, सब अरिष्ट नश जाय |
आतम सिद्धि को प्राप्त कर, अष्टम वसुधा पाय ||1||
(चौपाई)
जय अरहंत देव जिनराई, तीन लोक में महिमा छाई |
घाति कर्म चउ नाश किये हैं, भव्य जनों में वास किये हैं ||2||
दोष अठारह दूर किये हैं, छयालीस गुण पूर्ण हुए हैं |
समवशरण के बीच विराजे, तीर्थंकर पद महिमा राजे ||3||
क्षणभंगुर सारा जग जाना, जड़ चेतन को भिन्न पिछाना |
कल्याणक सब पंच मनाये, देव इन्द्र हर्षित गुण गाये ||4||
प्रभो! आपने प्रभुता पायी, दो हमको समता सुखदायी |
दुष्ट करम ने मुझको घेरा, निज स्वभाव से मुख को फेरा ||5||
प्रभो आप सिद्धालय वासी, दर दर भटका मैं जगवासी |
अब निज भूल समझ में आई, सिद्ध दशा हि मन में भाई ||6||
करो नमन स्वीकार हमारा, भव सागर से करो किनारा |
कर्म भंवर में मेरी नैया, गुरुवर तुम बिन कौन खिवैया ||7||
गुण छत्तीस मुनीश्वर धारे, इस कलयुग में आप सहारे |
दीक्षा देकर राह दिखाते, खुद चलते चलना सिखलाते ||8||
उपाध्याय पद है तम नाशे, गुण पच्चीस ज्ञान परकासे |
अठ्ठाईस गुणों के धारी, साधू पद की महिमा भारी ||9||
श्री जिनधर्म अहिंसा प्यारा, गूँज उठा है जग में नारा |
आगम आतम बोध कराता, फिर चेतन का शोध कराता ||10||
जिनने आगम को अपनाया, अहो भाग्य तुम सा पद पाया |
अनेकांत माय धर्म सहारा, द्वादशांग को नमन हमारा ||11||
कर्म निकाचित निधत्ति विनाशे, बिम्ब जिनेश्वर आतम प्रकाशे |
जिन स्वरूप का बोध कराती, जिन सम जिन मूरत कहलाती ||12||
जो जन नित जिन मन्दिर जावे, पाप नशे औ पुण्य बढ़ावे |
परमातम का ध्यान लगावे, शुद्ध होय मुक्तिपुर जावे ||13||
नव देवों को शीश झुकाऊँ, गुण गाऊं और ध्यान लगाऊँ |
रहूँ सदा मैं प्रभुवर चरणा, भव-भव मिले आपकी शरणा ||14||

(दोहा)
पूर्व पुण्य से हो रहा, नव देवों का दर्श |
अल्प बुद्धि कैसे लहे, अनंत गुण का स्पर्श ||15||

ॐ ह्रीं अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुजिनधर्मजिनआगमजिनचैत्यचैत्यालयेभ्यो जयमाला पूर्णार्घयं निर्वपामीति स्वाहा ||

(घत्ता)
प्रभुवर को पूजे, शिव पथ सूझे, भव-भव का संताप हरो |
नित पूज रचाऊं, ध्यान लगाऊं, भक्त को अब पूर्ण करो ||

Artist- आर्यिका पूर्णमति माताजी