नाथ तुम्हारी पूजा में, सब स्वाहा करने आया।
तुम जैसे बनने के कारण, शरण तुम्हारी आया ।।टेक।।
पंचेन्द्रिय का लक्ष्य करूँ मैं, इस अग्नि में स्वाहा।
इंद्र-नरेन्द्रों के वैभव की, चाह करूँ मैं स्वाहा ।।
तेरी साक्षी से अनुपम मैं, यज्ञ रचाने आया ।। तुम जैसा…।।1।।
जग की मान प्रतिष्ठा को भी, करना मुझको स्वाहा।
नहीं मूल्य इस मंद भाव का, व्रत-तप आदि स्वाहा ।।
वीतराग के पथ पर चलने, का प्रण ले कर आया ।। तुम जैसा…।।2।।
अरे जगत के अपशब्दों को, करना मुझको स्वाहा।
परलक्षी सब ही वृत्ति को, करना मुझको स्वाहा ।।
अक्षय निरंकुश पद पाने और पुण्य लुटाने आया ।।तुम जैसा…।।3।।