नमों मैं सदा ही श्री जिनवाणी।
हमें आत्म प्रभुता दिखाती है वाणी ॥ टेक ॥
परम ज्ञान दाता यही धर्म माता।
हमें मुक्ति मारग दिखाती है वाणी॥ नमों मैं… ॥१॥
विरह ज्ञानियों का हमें है सताता।
संदेश उनका सुनाती है वाणी॥ नमों मैं… ॥२॥
परम वीतरागी हुए होंगे ज्ञानी।
सु परिचय सभी का कराती है वाणी॥ नमों मैं… ॥३॥
गुरूवर का उपदेश तत्काल बोधक।
सतत बोधिनी है कही जिनवाणी॥ नमों मैं… ॥४॥
महामोह अंधेर जगभर में छाया।
सहज ज्ञान सूरज उगाती है वाणी॥ नमों मैं… ॥५॥
विषय चाह दावाग्नि लागी भयंकर।
उसे ज्ञान जल से बुझाती है वाणी॥ नमों मैं… ॥६॥
महिमा स्वयं की स्वयं ही न जानी।
हमें आत्म प्रत्यक्ष दिखाती है वाणी॥ नमों मैं… ॥७॥
समझकर स्वयं में ही रम जाएँ यदि हम।
हमें भी परम प्रभु बनाती है वाणी॥ नमों मैं… ॥८॥
सबके हृदय में बसे जिनवाणी।
परम शान्ति पावें सभी भव्य प्राणी॥ नमों मैं… ॥९॥
रचयिता: ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’
Singer : @Shreya_jain_Gala