बात पते की हम समझा रय, सच्ची राह तुम्हें दिखला रय।
मान जाव मुक्ति पा जैहो, नै मानो होरी में जाव ॥
पापभाव से तुम नहिं डर रय, आलू, पोहा, डोसा भख रय।
दिन व रात तुम्हें का दिख रव, हल्दीराम को पैकेट पुज रव ।
तुम्हें पापुलर बहुत सुहा रय, बिना पार्लर दिन नहिं जा रय।
जैन नाम काहे धरवा रव, लच्छन एक नहीं दिखला रव।
कैसे नरकों में दुःख सैहो, किसकी शरण वहाँ तुम जैहो।
अब भी सीख गुरु मन लाव, नै मानो होरी में जाव ॥
कभी पुण्य में मन उलझा रय, सुन लई स्वर्ग दिलावन हारे।
अमर स्वर्ग के देव मर रय, राग आग में वे भी जर रय।
पुण्य कर्म है धर्म नहीं है, धर्म, धर्म है खबर नहीं है।
पुण्य पाप में भेद ना डारो, तीव्र मंद ज्वर कौन है प्यारो।
धर्मामृत की प्यास जगावो, नै मानो होरी में जाव ॥
ज्ञानानंदी रूप तुमाव, सभी साधु सन्तन खों भाव।
अर्हन्तादि प्रभु समझाव, आ जा बेटा घर आ जाव।
सब जग से जिनशासन न्यारो, धर्म अकर्तावादी प्यारो।
सभी द्रव्य परिणमनशील जब, अब का रै गव काम तुमाव।
सुबह के भूले शाम घर आव, नै मानो होरी में जाव ॥
अपने चांटे गोरे बन रय, सबको ठेका सिर पे ले रय।
अब लों का कर लव बतलाव, रोम भी टेड़ो कर दिखलाव।
कार्य विकल्पों से कहुं भव है, दु:ख सिवा और का लव है।
अनहोनी का कबहूं भई है, होनी हुए बिना कहुं रई है।
चेतो चेतन ना बहकाव, नै मानौ होरी में जाव ॥
निर्ग्रन्थों की महिमा लाव, कितनी बिरियां हमें जगाव।
विषयों में सुख किसे मिला है, भोग लम्पटी नरक डला है।
सरल स्वभावी पार हो गए, अंजन अरे निरंजन हो गए।
देख सुकौशल मुनि सुकुमाल, सुनी देशना किया कमाल।
भेद-ज्ञान कर घर आ जाव, नै मानो होरी में जाव ॥
तीर्थंकर से भये बली हैं, तिनकी भी जब नहीं चली है।
उनकी भी क्या मृत्यु टली है, जग में किसकी दाल गली है?
तू जग का अनमोल रतन है, प्रभुता से भरपूर सदन है।
द्रव्यदृष्टि से खुद को पढ़ ले, सिद्धों जैसा अनुभव कर ले।
तुझे राग भी नहीं हटाना, उसको तो खुद ही मर जाना।
बना बनाया प्रभु अपनाना, सादि अनंत काल सुख पाना।
सस्ता सौदा झट अपनाव, नै मानो होरी में जाव ॥
पं. राजेन्द्रकुमार, जबलपुर