नहीं अभिमान करो रे भाई | Nahi Abhiman karo re bhai

नहीं अभिमान करो रे भाई, नहीं अभिमान करो।
सिद्ध समान आत्मा सब ही, मिथ्या मोह तजो।।टेक।।

गुण अनन्त के स्वामी हैं सब नहीं न्यून कोई।
अरे विषमता पर्यायों की, नहीं स्वरूप होई।।
हे भवि तज पर्यायदृष्टि, अब अन्तर्दृष्टि धरो।।…1

क्षणभंगुर पर्यायें अरु संयोग सभी जानो।
अशरण दुःख के ही आश्रय हैं, अपने नहीं मानो।।
नहीं अवसर है मोह मान का, भेदविज्ञान करो।।…2

होते सुर भी एकेन्द्रिय, खोटे परिणामों से।
हो जाते तिर्यंच अरे सुर शुभ परिणामों से।।
संयोगों की अति विचित्रिता, देख विरक्ति धरो।।…3

धनी भिखारी होय स्वस्थ होवें रोगी क्षण में।
अज्ञानी ज्ञानी, पापी धर्मी होवें पल में।।
अति दुर्लभ अवसर पाया, आराधन सहज करो।।…4

नहीं दीनता, नहीं निराशा, मन में तुम लाओ।
ज्ञानाभ्यास करो अब तो रत्नत्रय प्रगटाओ।।
नहीं भटकना, नहीं अटकना, शिवपद प्राप्त करो।।…5

रचयिता: श्रद्धेय ब्र० पंडित रवीन्द्र जी

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