मूरतिपर वारीरे नेमि जिनिंद। Murti Par Vari re Nemi Jinind

मूरतिपर वारीरे नेमि जिनिंद ॥ टेक ॥
छपन कोटि यादव कुलमंडन, खंडन कामनरिंद ।। मूरति ।। १ ।।
जाको जस सुरनर सब गावैं, ध्यावैं ध्यान मुनिंद ॥ मूरति ॥ २ ॥
‘द्यानत’ राजुल प्रानन-प्यारे, ज्ञान- सुधाकर इंद ॥ मूरति ॥ ३ ॥

अर्थ: मैं नेमिनाथ जिनेन्द्र की छवि पर बलिहारी हूँ ।
जो छप्पन प्रकार के यादव कुलों के राजा थे, यादव कुलों के आभूषण थे, जो कामदेव को लजाते थे; जिनका यश देव, मनुष्य सभी गाते हैं और मुनि जिनका ध्यान करते हैं मैं नेमिनाथ जिनेन्द्र की उस छवि पर बलिहारी हूँ ।

द्यानतराय जी कहते हैं कि राजुल के प्राणों के प्यारे वे नेमिनाथ ज्ञानरूपी समुद्र के इंद्र हैं मैं उनकी छवि पर बलिहारी हूँ।

रचयिता: पंडित श्री द्यानतराय जी
सोर्स: द्यानत भजन सौरभ