मुनि निजरूप परम शिवभूत, मोह उदंगल नाश किया ॥ टेक॥
पंच महाव्रत समिति पंच है, पंचेन्द्रिय पर जय पाया।
षट् आवश्यक सात शेष गुण, पाल्यो तुम मन-वच-काया ॥१॥
तीन चौकड़ी नाशन शुद्ध, बहिरात्म को हेय किया।
निज अन्तर आतम को ध्याकर, परमातम पुरुषार्थ किया ॥२॥
नमन करत ‘सिद्धान्त’ तुम्हें, अब निजहित का उपदेश दिया।
समयसारमय समयसार ध्या समयसार मैं प्राप्त किया ॥३॥
रचयिता : मंगलार्थी @Siddhant_Jain
Singer: @Deshna