मन भायो महावीर जिनरूप | Mnn bhay mahaveer jinrup

(तर्ज- रंगलाग्यो महावीर थारो रंग लाग्यो …)

मन भायो महावीर जिनरूप भायो।
जिनरूप भायो निजरूप भायो । टेक।।

जिन रूप जग में अलौकिक है पाया।
जिनरूप आनन्दमय है दिखाया।।
होवे प्रगट मेरे भाव आयो।।1।।

जिसमें कषायों का क्लेश नहीं है।
जिसमें परिग्रह का लेश नहीं है।।
सहज आनन्दमय रूप भायो।2।।

कर्म कलंक रहित अविकारी।
दर्श ज्ञान सुख बल अनंत धारी ।।
त्रिभुवन पूज्य स्वरूप भायो।।3।।

निंदक से द्वेष कर श्राप नहिं देते।
पूजक को राग से वरदान नहिं देते ।।
वीतराग अदभुत स्वरूप भायो।।4||

प्रभु सम ही शाश्वत आतम स्वभाव।
परभाव शून्य है ज्ञायक स्वभाव।।
नित्य निरंजन स्वदेव भायो।।5।।

वाँछा नहीं कुछ निजप्रभु ही ध्याऊँ।
निर्ग्रन्थ होऊँ शिवपद को पाऊँ।।
भक्ति से चरणों में शीश नायो ।6।।

Artist - ब्र. श्री रवीन्द्रजी ‘आत्मन्’

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