मिच्छामि दुक्कड़ं | Michchhami Dukkadam

‘मिच्छामि दुक्कडं’ और ‘मिच्छा मे दुक्कडं’ के अर्थ का विचार

(इस लघु-लेख में उक्त पदों के अर्थ का व्याकरण अनुसार विचार किया गया है। यदि किन्हीं विद्वान् को इसमें कोई त्रुटि प्रतीत हो, तो मुझे सुधारने की कृपा कर अनुगृहीत करें। सधन्यवाद ।)

“मिच्छामि दुक्कडं” और "मिच्छा मे दुक्कडं दोनों ही प्रयोग क्षमा मांगने के अर्थ में प्रचलित हैं। सामान्यतया इनका अर्थ ‘मुझे क्षमा करें’ ऐसा समझा जाता है। शाब्दिक अर्थ अनुसार ऐसा भी अर्थ बताया जाता है ‘मेरे दुष्कृत मिथ्या हों’। तथापि इन आर्ष वाक्यों से ये दोनों अर्थ व्याकरण अनुसार कैसे सिद्ध होते हैं, यह जिज्ञासा का विषय रहता है।

*"दुक्कडं - दुष्कृत अर्थात् पाप यह अर्थ तो स्पष्ट ही है। ‘मिच्छामि’ या ‘मिच्छा मे’ में प्रथम शब्द ‘मिच्छा’ का संस्कृत रूप ‘मिथ्या’ किया जाता है। किन्तु ‘मिथ्यामि’ ऐसा रूप संस्कृत व्याकरण में नहीं बनता, अतः ‘मिच्छामि’ का ‘मिथ्यामि’ ऐसा रूपांतर योग्य समझ में नहीं आता। तथा ‘मिच्छा’ का संस्कृत रूपांतर ‘मिथ्या’ बनेगा, किन्तु यह संज्ञा है, क्रिया नहीं है। अतः "मिच्छा मे दुक्कडं का अर्थ ‘मेरे दुष्कृत मिथ्या’ इतना ही बनेगा। यद्यपि इसमें ‘भवतु’, ‘अस्तु’ आदि क्रियापदों का अध्याहार किया जा सकता है, किन्तु अपने आप में यह वाक्य अपूर्ण अर्थ वाला ही हुआ। तथा ‘मेरे दुष्कृत मिथ्या (हों)’ ऐसा अर्थ भी क्षमा मांगने के अर्थ में व्यवहारिक प्रतीत नहीं होता। भले ही खींचकर यह अर्थ भी क्षमा के अर्थ में योग्य लग सकता है, किन्तु इन दोनों पदों के अधिक संतोषजनक व प्रासंगिक अर्थ का विचार होना चाहिए।

इस प्रकार का अर्थ संस्कृत व्याकरण से इन दोनों पदों का समझ आता है। संस्कृत व्याकरण में *"मृषै तितिक्षायाम् धातु है, जिसका अर्थ है सहना, क्षमा करना। इसका परस्मैपद लट्-लकार के उत्तमपुरुष-एकवचन में ‘मृष्यामि’ रूप बनता है, जिसका अर्थ है ‘क्षमा करता हूँ’। यह पद ‘मिच्छामि’ का सटीक रूपांतर भी बनता है। इससे "मिच्छामि दुक्कडं का अर्थ ‘मैं (आपके) दोषों को क्षमा करता हूँ’ ऐसा बनता है, जो योग्य भी है। तथा इसी धातु का लोट् लकार (आज्ञार्थक) मध्यमपुरुष एकवचन में ‘मृष्य’ रूप बनता है, जिसका अर्थ है ‘तुम क्षमा करो’। यह रूप मिच्छा का सही रूपांतर भी बनता है। इसके अनुसार "मिच्छा में दुक्कडं का अर्थ ‘तुम मेरे दोषों को क्षमा करो’ ऐसा बनता है।

ये दोनों ही अर्थ संस्कृत व्याकरण अनुसार सिद्ध होते हैं, अर्थ संबंधी संतोष भी उत्पन्न करते हैं व प्रकरण के साथ भी न्याय करते हैं। अतः परस्पर "मिच्छा में दुक्कडं’ कहकर हम सामने वाले से अपने दोषों की क्षमा-याचना करते हैं, व "मिच्छामि दुक्कडं कहकर उनके दोषों को क्षमा करते हैं।

  • डॉ. ऋषभ जैन, शास्त्री जयपुर