म्हारे आँगणें में आये मुनिराज, हमारो मन नाचे है।
सारी सृष्टि के हैं सरताज, हमारो मन राचे है।।टेक।।
भेष दिगम्बर प्यारा-प्यारा, आँखों को लगता मनहारा।
परम दिगम्बर मुद्रा प्यारी, सन्तों की मुद्रा है न्यारी।।
मानों सिद्ध प्रभु का अवतार।।१।।
हाथ कमण्डलु काठ का, पीछी पंख मयुर।
विषय वास आरम्भ तज, परिग्रह से हैं दर ।।
मानो मुक्तिपुरी का राज ।।२।।
बालक सम निर्दोष तुम्हारा, चारित्र है जीवन में प्यारा।
मुद्रा ही सन्देश सुनाती, जग नश्वरता भान कराती ।।
मानो निर्मल जल की धार ।।३।।
अत्रो अत्रो, तिष्ठो तिष्ठो, हृदय कमल में अत्रो तिष्ठो।
मम मन्दिर में आज विराजो, रत्नत्रय की निधियाँ बाँटो ।।
मानों आया कल्पवृक्ष आज ।।४।।
कनक कामिनी के हैं त्यागी, सब कुछ ममता त्याग विरागी।
सिद्धों के संग बातें करते, गुण अनन्त में केली करते ।।
मानो सर्व सुखों का धाम ।।५।।