म्हांकै घट जिनधुनि अब प्रगटी । Mhake Ghat Jindhwani Ab Pragti

म्हांकै घट जिनधुनि अब प्रगटी

( राग सोरठ)

म्हांकै घट जिनधुनि अब प्रगटी ।। टेक ॥।
जागृत दशा भई अब मेरी, सुप्त दशा विघटी।
जगरचना दीसत अब मोकों, जैसी रँहटघटी ।। १ ।।
विभ्रम तिमिर हरन निज दृगकी, जैसी अँजनवटी ।
तातैं स्वानुभूति प्रापतितैं, परपरनति सब हटी ॥ २ ॥
ताके बिन जो अवगम चाहै, सो तो शठ कपटी ।
तातैं ’ भागचन्द’ निशिवासर, इक ताहीको रटी ।। ३ ।।

रचयिता: कविवर श्री भागचंद जी जैन