मेरे मन सूवा, जिनपद पींजरे वसि, यार लाव न बार रे
(राग सोरठ)
मेरे मन सूवा, जिनपद पिंजरे वसि, यार लाव न बार रे । । टेक ॥।
संसार सेमलवृक्ष सेवत, गयो काल अपार रे ।
विषय फल तिस तोड़ि चाखे, कहा देख्यौ सार रे ।। १ ।।
तू क्यों निचिन्तो सदा तोकों, तकत काल मंजार रे ।
दाबै अचानक आन तब तुझे, कौन लेय उबार रे ।। २ ।।
तू फंस्यो कर्म कुफन्द भाई, छूटै कौन प्रकार रे ।
तैं मोह - पंछी - वधक - विद्या, लखी नाहिं गंवार रे || ३ ||
है अजौं एक उपाय ‘भूधर’, छूटै जो नर धार रे ।
रटि नाम राजुल - रमन को, पशुबंध छोड़न हार रे ।।४ ।।
रचयिता: कविवर श्री भूधरदास जी
Source: आध्यात्मिक भजन संग्रह (प्रकाशक: PTST, जयपुर )