मरुदेवी माता…२ , मरुदेवी माता…२
जय आदिनाथा…२, जय आदिनाथा…२ ।।टेक।।
मरुदेवी माता के जब तुम गर्भ में आए।
मानो मुक्तिदूत बनकर आप समाए।।
अयोध्या नगरी में देखो आनंद छाया।
मानो कल्पवृक्ष माता के उदर समाया।।मरुदेवी माता…।।१।।
गर्भ समय सोलह सपने माता ने देखे।
अचरज भारी होता है माता के मन में।।
रोम-रोम पुलकित है माता जी के तन का।
हर्ष भरा स्वागत मुक्ति के शुभागमन का।।मरुदेवी माता…।।२।।
तीन लोक का वैभव मुझको फीका लागे।
अगुरुलघु शक्ति के कारण कुछ न सुहावे।।
निज स्वभाव के आश्रय से भगवान बनेंगे।
मुक्ति वधु को वर कर निज ध्रुवधाम रमेंगे।।मरुदेवी माता…।।३।।