मंगलाष्टक | Manglastak By Br. Shri Ravindra Ji 'Atman'

वीतराग-सर्वज्ञ हितकर, त्रिभुवन स्वामी जो सुखकार ।
भक्ति सहित हम करें स्मरण, श्री अरहंत हो मंगलकार ।।१।।

ज्ञानशरीरी अशरीरी प्रभु, मुक्त स्वरूप नित्य सुखकार ।
भक्ति सहित हम करे स्मरण, सिद्ध प्रभु हो मंगलकार ।।२।।

पंचाचार परायण गुरुवर, सकल संघ नायक सुखकार ।।
भक्ति सहित हम करे स्मरण, श्री आचार्य हों मंगलकार ।।३।।

साधु संघ में अधिकारी हो, धर्म-ज्ञान देते सुखकार ।
भक्ति सहित हम करें स्मरण, उपाध्याय हों मंगलकार ।।४।।

विषयाशा-आरंभ रहित हैं, ज्ञानी मुनिवर जो सुखकार ।
भक्ति सहित हम करें स्मरण, साधु सर्व हों मंगलकार ।।५।।

जिनवाणी जिनतीर्थ चैत्य, चैत्यालय जग में जो सुखकार ।
भक्ति सहित हम करें स्मरण, हम सबको हों मंगलकार ।।६।।

सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चरितमय, धर्म अहिंसा शिव सुखकार ।
भक्ति सहित हम करें स्मरण, दशलक्षण हो मंगलकार ।।७।।

पंचकल्याणक तीर्थेश्वर के, दर्शाये सुरगण सुखकार ।
भक्ति सहित हम करें स्मरण, हम सबको हों मंगलकार ।।८।।

धर्म महोत्सव आज मनावें, लें जिन नाम परम सुखकार ।
नित परिणाम पवित्र हमारे, हम सबको हो मंगलकार ।।९।।

रचयिता - ब्र.श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’

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