(तर्ज : हम सब जिनमन्दिर में आये…)
मंगल तीर्थ क्षेत्र में आये, मंगलमय प्रभु दर्शन पाये।
धन्य घड़ी सुखकार रे, आनन्द अपरम्पार रे । टेक।।
मंगलमय जिनशासन पाया, भेदज्ञान का सूर्य उगाया।
मिला समय का सार रे…।।1।।
अद्भुत शान्ति यहाँ है पायी, चंचलता सहजहि बिनशायी।
छूटे व्यसन विकार रे…||2।।
परम भाव में परिणति रमती, भाव विशुद्धि सहजहि बढ़ती।
झड़े बन्ध दु:खकार रे… ।।3।।
मंगलमय है तीर्थ हमारा, परम धर्म साधन सुखकारा।
चित्स्वरूप अविकार रे…।।4।।
हो निवृत्त निजातम ध्याऊँ, आधि व्याधि उपाधि नाशं ।
हो समाधि सुखकार रे…।।5।।
उपसर्गों की नहीं परवाह, भोगों की भी रही न चाह ।
भासा जगत असार रे…।।6।।
शिवपथ में बढ़ता ही जाऊँ, निश्चय परमपूर्णता पाऊँ।
वंदन हो अविकार रे…।।7।।
Artist: ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’