मंगल शुभ स्वप्न आए रे| Mangal Shubh Swapn Aaye Re (16 Swapn Darshan)

देखो शुभ रैना आये, तारों ने दीप जलाये
जब माँ निद्रा में जाये, चन्दा भी गीत सुनाए
मन हुआ अचंभित आज, बज उठे साज, चित्त हर्षाए रे…
मंगल शुभ स्वप्न आये रे।
माता मन मन मुस्काए रे ।।

देखा, सुविशाल ऐरावत हाथी देखा, जो गरजे मानो मेघ छाये रे ।
देखा, इक श्वेत रंगी बैल भी देखा, कंधे हैं मानो ढोल साजे रे ।।१।। मन हुआ….

इक सिंह बलशाली, अर श्वेत रंग धारी, कंधों पर लाली खूब साजे रे।
शुभ लक्ष्मी आयी, पद्मासन पर ठायी, अर देवगज कलशे बरसायें रे ।।२।। मन हुआ….

देखी, दो पुष्प सुरभित मालायें देखी, जिन पर भवरों ने गीत गाये रे।
देखी वो चंद्रमा की चाँदनी देखी, मोती समान माता मुस्काये रे ।।३।। मन हुआ…

उगता हुआ दिनकर, उज्ज्वल रवि तमहर, दीपावली ही द्वार लाये रे।
स्वर्णिम कलश आए, झिलमिल चमक लाये, जगमग जग का वैभव शर्माये रे! ।।४।। मन हुआ….

देखी, दो मीन सरवर में क्रीड़ा करती, मानो माता के नैन लागे रे।
देखा, केसर पद्मों से युक्त सरवर भी, शुभ ऋतुयों का शृंगार लागे रे। ।।५।। मन हुआ….

विस्मित हुआ मन था, देखा समुंदर था, जलकण उछलते खिलखिलाये रे ।
उत्तुंग सिंहासन, मणियाँ करें वासन, मेरु शिखर सा जगमगाए रे।।६।। मन हुआ….

देखा, इक देवयान रत्नों से मंडित, मानो देवों की भेंट लागे रे।।
देखा, भूगर्भ से नागेंद्र-गृह बनते, पायी त्रिभुवन की हर निधि मन में।।७।। मन हुआ….

चमके रतन राशि, दमके दरिदनाशी, पृथ्वी क्यों प्रमुदित हो मुस्काये रे!
अग्नि अति पावन, निर्धूम मन भावन, धरती यों सारी जगमगाये रे।। ८।। मन हुआ….

अंतिम बेला, अंत समय में, एक बैल शुभ सुखकर।
मुख के द्वारे आया भीतर बजे दुंदुभि प्रदकर।
करवट पलटे, स्वप्न को देखें, मन प्रमुदित मुख सुंदर ।
लगता जैसे प्रगट हो गए सारे चित्र मनोहर।।

तब भोर की पहली किरण माँ को जगाये रे,
मंगल शुभ स्वप्न आये रे।।

लेखक: दिव्यांश जैन शास्त्री, अलवर

Youtube: https://youtu.be/ooD6-jogDaU?si=EZAe_MAqXLTPuWK3

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