आधि-व्याधि परिपीड़ित जन-मन मंगलमय हो जावे।
(1)
धवल हिमाचल में बिखरी है जिसकी अमृत जड़ियां,
विश्व शान्ति-संदेश लिए जीती जिसकी संस्कृतियां।
स्वच्छ पवन पीयूष-दुग्ध देते थे जिसको जीवन,
शस्य-श्यामला भूमि धान्य जिसका मानो संजीवन।
प्रकृति का यह देश, सभी प्रकृति जीवी बन जावे,
आधि-व्याधि परिपीड़ित जन-मन मंगलमय हो जावे
(2)
ऋषियों का यह देश हमारा शोषित है, लुंठित है,
आज हुई निस्सीम स्वार्थ से मानवता पीड़ित है।
मृत मानव को जीवन देती ऋषियों की जो निधियां,
आज हुई वे मात्र हमारी धन-अर्जन की विधियां।
त्रस्त हुए कण-कण जग के रे! क्यों कर संबल पावें,
आधि-व्याधि परिपीड़ित जन-मन मंगलमय हो जावे।
(3)
तरू अशोक, तुलसी, पलास, फल-फूल, मूल, सरितायें,
अमर प्रकृति के उपादान ये कोमल बेलि लताएं।
पद-पद पर इनकी सौरभ से महक उठे यह जीवन,
कृत्रिम साधन में न नष्ट हो कभी हमारे तन-धन।
मुरझाये मानव-मानस में आशा सुमन खिलावें,
आधि-व्याधि परिपीड़ित जन-मन मंगलमय हो जावे।
(4)
सरस सरोवर मानस का है सूना शुष्क मरूस्थल,
भीषण रोग-शोक के जिसमें बढ़े करीलों के वन।
ये शीतल उद्यान बन चले, हो जीवन में समता,
जन-सेवा-हित बढ़े छोड़ हम जड़ प्राणों की ममता।
तपते झंझावातों में हम मलय समीर बहावें,
आधि-व्याधि परिपीड़ित जन-मन मंगलमय हो जावे।
Artist: श्री बाबू जुगलकिशोर जैन ‘युगल’ जी
Source: Chaitanya Vatika