मङ्गल बेला आज आई री सखिरीया
हुआ लहर-लहर ये चेतन का घर
जरा निरखन दे॥
अनन्त गुणों से छलाछल ये सागरिया
कहीं पाये जो गर, गोते खावे ना सवर, सुख पावेंगे
मङ्गल बेला…
अब की बार हम जायेंगे जग से, मोह का पाया अन्त रे,
अन जाना एक आतम है प्यारे, कर ले उसका संग रे।
मोह जाल में फस मत जाना-2 ना करना कुसंग रे,
संग करने का निज वादा है सखिरीया हुआ लहर लहर…
मङ्गल बेला… ॥१॥
कितनी दूर अब कितनी दूर है, ऐ चेतन तेरा धाम रे,
अरूपी से पहचान हुई तो, जीवन हो गया धन्य रे।
सम्यक हीरा परख लिया तो-2 कटे चौरासी के फन्द रे,
फन्द हरने का भव पाया है सखिरीया… हुआ लहर लहर…
मङ्गल बेला… ॥२॥