मनभावनी जिनमुद्रा , अरिहंत की मूरत सुखकारी ।
भवतारिणी छवि थारी जाऊं मैं बलिहारी ।।
कर पर कर रख जग को लखते, तदपि रमन निज में करते ।
स्व पर प्रकाशी निजपुर वासी, चेतन परमानंद विलासी ।।
जिनदर्शन कर, निजको लख लूं
जान लूं मैं… आत्मा
बस है यही भावना ।। मनभावनी जिनमुद्रा…
अनहद आनंद धारा झरती, अंतर परिणति कलरव करती ।
दर्श ज्ञान सुख वीर्य हिलोरें, अस्त हुई सब करम विभोरें ।।
तुमको लख कर, निज को लख लूं
जान लूं मैं… आत्मा
बन जाऊं परमात्मा ।। मनभावनी जिनमुद्रा…