मन सावधान रहना । Man Savdhan Rahna ।

मन सावधान रहना, मन सावधान रहना।
पर्याय बदले क्षण-क्षण, तू इनमें नाहीं बहना

आये विकल्प जैसे, हो जाए काम वैसा।
तू तो अकर्ता ही है, ये मंत्र न विसरना।।
विषयों में सुख-सा भासे, ज्यों श्वान स्वाद चाखे।
इन्द्रिय-विषय में गाफिल, हो दुर्गति न पड़ना।।1।।

ज्ञेयों से ज्ञान पाने, जीवन ही मिटा है डाला।
हूँ जानहार खुद-ही, अनुभव यही है करना।।
कभी पुण्य का उदय हो, मिली ख्याति-लाभ-पूजा।
इन स्वांगों में रिझा कर, जीवन न नष्ट करना।।2।।

कभी पाप का उदय हो, अपमान होवे क्षण-क्षण।
अपमान है क्या तेरा, तू ज्ञाता मात्र रहना।।
साधर्मियों की संगत, पाना असंग पाने,
विधर्मियों से बचना, दस हाथ दूर रहना।।3।।

कभी दीनता न लाना, धन-धान्य की कमी से।
जिनधर्म रत्न पाके, नित ही प्रसन्न रहना।।
महाभाग्य से मिले हैं, जिन देव-शास्त्र-गुरुवर।
गुरुदेवश्री मिले हैं, जीवन को धन्य करना।।4।।

रचयिता: पंडित राजेन्द्र कुमार जी, जबलपुर

Voice: Pt. Sunil Ji Jain, Rajkot

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यह भजन आदरणीय पंडित राजेन्द्र कुमार जी, जबलपुर द्वारा लिखा गया है

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