मन ! मेरे राग भाव निवार |
राग चिक्कनतैं लागत है, कर्मधूलि अपार || टेक ||
राग आस्रव मूल है, वैराग्य संवर धार |
जिन न जान्यो भेद यह, वह गया नरभव हार || १ ||
दान पूजा शील जप तप, भाव विविध प्रकार |
राग बिन शिव सुख करत है, राग तैं संसार || २ ||
वीतराग कहा कियो, यह बात प्रगट निहार |
सोई कर सुख हेत ‘द्यानत’ शुद्ध अनुभव सार || ३ ||
Artist- पं. द्यानतराय जी