(तर्ज-जब तीर्थकर का जन्म हुआ…)
मैं उस पथ का अनुगामी हूँ, जिस पर चलकर प्रभु सिद्ध हुए।
प्रभु सिद्ध हुए प्रभु मुक्त हुए, जिस पर चलकर प्रभु सिद्ध हुए। टेक।।
है मूल अहो सम्यग्दर्शन, पथ सम्यग्ज्ञान विरागमयी।
पर से निरपेक्ष सहज स्वाश्रित, अरु निर्ग्रन्थ मार्ग आनन्दमयी।।1।।
अविरल आतम अनुभव वर्ते, स्वयं स्वयं में तृप्ति हो।
सब ज्ञेय ज्ञान में रहें भले,पर किंचित् नहीं आसक्ति हो।2।।
नहीं असत् विभावों की चिन्ता, नहीं वाँछा हो परभावों की।
निर्वेद रहूँ निष्काम रहूँ, नहीं चंचलता हो भावों की ।।3।।
आराधन में ही मग्न रहूँ, ध्येय ध्याता ध्यान विकल्प नहीं।
निश्चलता हो अविकलता हो, जब कोई अन्तर जल्प नहीं ।।4।।
बस सहज ध्यान धारा वर्ते, भव बन्धन टूटें शिव पाऊँ।
ज्ञायक हूँ ज्ञायक रहूँ सदा, अपनी प्रभुता मैं विलसाऊँ।।5।।
Artist - ब्र.श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’