यह उपादेय तिहुँ लोक में यह समयसार अति प्यारा
मैं समयसार बन जाऊँ ज्ञायक प्रभु लक्ष्य हमारा ।
ध्रुव अचल सु अनुपम गति पति वंदन है , सब सिद्धों को
श्रुति केवली द्वारा सु कथित वंदन ग्रन्थाधिराज को।
ये सिद्ध दशा है सुखमय ये पावन है निर्मल है।
मैं समयसार …
जिन स्वभाव के आश्रय से पर्याय एक सी ध्रुव है।
परिभ्रमण नहीं होने से ये पंचम गति अचल है।
अद्भुत महिमा के धारक होने से ही अनुपम है।
मैं समयसार…
त्रयवर्ग भिन्न अद्भुत है अपवर्ग इसे कहते हैं।
सब कमी से विरहित है पंचमगति विमल अमल है।
सिद्धत्व साध्य है मेरा अशरीरी प्रभु आदर्श है।
मैं समयसार…
यह उपादेय…