मैं रागी बनूँगा न । Main Raagi Banunga Na

मैं रागी बनूँगा, न मैं द्वेषी बनूँगा।
भगवान की संतान हूँ, भगवान बनूँगा ।।टेक।।

इस मोह भाव ने मुझे, संसार भ्रमाया।
विपरीत मान्यता से, मैं दुक्ख ही पाया।।
और व्यर्थ में ही यूं अनंत काल गँवाया।।
संसार में फिर से नहीं, मैं जन्म धरूँगा ।।1।।

अज्ञानता से मैंने, जिस वस्तु को जाना।
एकत्व और ममत्व से, अपना उसे माना।
जो जानने के योग्य था, बस वो ही न जाना।।
अब भेदज्ञान पूर्वक, आत्मज्ञान करूँगा ।।2।।

व्रत शील और संयम, बाहर से ही किये।
इच्छा निरोध के कभी, प्रयास न किये।
और पाप छोड़ पुण्य में, संतुष्ट ही रहे।।
मैं तो विकार से भी, भेदज्ञान करूँगा ।।3।।

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