मैं ज्ञान मात्र बस, ज्ञायक हूँ, आनंदमयी बस ज्ञायक हैं। ज्ञान में ही बस रमेंगे -२, मुक्ति पाने के लिए। मोह तज निज को वरेंगे, निज में समाने के लिए।।टेक।।
आत्मा ही ज्ञेय है बस, आत्मा ही ज्ञान है;
आत्मा ही ध्येय है बस, आत्मा ही ध्यान है ।
चाह कुछ बाकी नहीं है, मुक्ति पाने के लिए ।। मोह तज…।।१।।
ज्ञेय जैसा ज्ञान होता, ज्ञान ज्ञेयाकार है;
किन्तु वह परमार्थ से ही, ज्ञान का आकार है ।
ज्ञान को ही ज्ञान जाने, मुक्ति पाने के लिए ।।
मोह तज… ।।२।।
विषय सुख अब नहीं हैं भाते, ज्ञेय की वाँछा नहीं;
स्वर्ग की भी कामना मन में, सुहाती है नहीं ।
स्वर्ग में ही स्वयं की सृष्टि रचाने के लिए ।। मोह तज…।।३।।