महिमा कही न जाए मुख से | mahima kahi naa jaye mukh se

महिमा कही न जाए मुख से ऐसा बना है पलना।
भाग्य जगे हैं उन जीवों के जो आज झुलाये पलना॥ टेक॥

स्वर्गपुरी से आया है देखो सुन्दर पलना,
पुण्य उदय से उन भविजन के जो पहले झुलाए पलना,
ऐसा अवसर देखा भैय्या कभी दुबारा न मिलना ।
मिल झुलाओ पलना ॥१॥

लेके बलैय्या अपने लाल की माता हर्ष मनावें,
सिद्धारथ जी हर्षित भारी देखो दान लुटावे
माता भी आओ पिता भी आओ सब मिल झुलाओ पलना ॥२॥

मंगल कलश सजा के सखिया, मंगल गान सुनावें,
घर-घर देखो, दीप जल रहे भुमियन चौक पुरावें
स्वर्णपुरी सी नगरी सजी है, हमसे वरणी न जाए ॥३॥