मानुष जनम सफल भयो आज।। टेक।।
सीस सफल भयो ईश नमत ही, श्रवन सफल जिनवचन समाज।।मानुष. ।।
भाल सफल जु दयाल तिलकतैं, नैन सफल देखे जिनराज ।
जीभ सफल जिनवानि गानतैं, हाथ सफल करि पूजन आज ।।मानुष. ।।१ ।।
पाँय सफल जिन भौन गौनतैं, काय सफल नाचैं बल गाज ।
वित्त सफल जो प्रभुकौं लागै, चित्त सफल प्रभु ध्यान इलाज ।।मानुष. ।।२ ।।
चिन्तामणि चिंतित-वर-दाई, कलपवृक्ष कलपनतैं काज ।
देत अचिंत अकल्प महासुख, `द्यानत’ भक्ति गरीबनिबाज ।।मानुष. ।।३ ।।
अर्थ- मेरा मनुष्य जन्म पाना आज सफल हो गया। भगवान के चरणों में नमन करने के कारण शीश तथा समाज में जिन वचन सुनने के कारण ये कान सफल हो गए।
भाल (ललाट) भगवान की पूजा की केसर का तिलक लगाने के कारण और नयन श्रीबिंब के दर्शन करने के कारण सफल हुए हैं। जिव्हा श्रीजिन का गुणगान करने से तथा हाथों से श्रीजिन की पूजा करने से सफल हो गए हैं, इनका होना सार्थक हो गया है।
(पाँवों से ) चलकर जिन मन्दिर तक जाने से पाँव सार्थक हो गये तथा यह देह जिनपूजा के मध्य भक्तिपूर्वक मग्न होकर नृत्य करने से सफल हो गई। वित्त (धन) प्रभु के निमित्त कार्य में संलग्न होने से सफल हो गया तथा चित्त ध्यान में लगने के कारण सफल हो गया है।
ऐसे चिंतामणि का चिंतन ही वरदान है और कल्पनाओं के साकार होने के लिए कल्पवृक्ष के समान है। द्यानतराय जी कहते हैं कि ऐसे दीनदयाल की भक्तिपूजा से अचिन्त्य महासुख का लाभ होता है।
रचयिता: पंडित श्री द्यानतराय जी
सोर्स: द्यानत भजन सौरभ