मान के ये शैल रेतीले
मृग मरीचि के मधुर टीले
झूमता उद्यान में ज्यों झाड़
भूमि पर करता करूण-चीत्कार
रे चिता पर मखमली संस्तर
किंतु है निस्तब्ध मानी स्वर
भूप बनता कीच का कीड़ा
मान की लिख लो महा पीड़ा
'काल खुद लिखता रहा इतिहास
मान का करता रहा उपहास
कांच की चूड़ी निभा ले साथ,
पर न करना मान का विश्वास
Artist: श्री बाबू जुगलकिशोर जैन ‘युगल’ जी
Source: Chaitanya Vatika