माँ सुनाओ वो गाथा सुहानी,
जिससे परिणति हो वीतरागी ।
तीर्थंकर विरह को भुला दे
सीधे सिद्धों से बातें करा दे
जो साधू समागम करा दे
निज धरम के मरम को बता दे
ऐसी परिणति सहज प्रगटावे
माँ सुनाओ वो गाथा सुहानी ।।
वो कहानी जो समता सिखा दे
निज स्वरूप में रमना सिखा दे
शुद्ध चेतन की कथनी सुहानी
जिसमें वृद्धि न हो ना हो हानी
जिससे परिणति हो आसमानी
माँ सुनाओ वो गाथा सुहानी ।।
जिसमें शुद्धात्मा की कथा हो
जो हरती हमारी व्यथा हो
अनेकान्तमयी जो बखानी
स्याद्वाद है जिसकी निशानी
ना हो कथनी जिसकी पुरानी
माँ सुनाओ वो गाथा सुहानी ।।
जिसमें कर्तृत्व का बोझ ना हो
जिसमें भोक्तृत्व की सोच ना हो
जिसमें एकत्व ममत्व ना बसा हो
मात्र ज्ञातृत्व भाव पुशा हो
जिससे तृप्त रहे मुक्ति रानी
माँ सुनाओ वो गाथा सुहानी।।
चहुँ गति का मिटे दुःख ऐसे
सिद्ध सुख हो सहज प्राप्त तैसे
राग के भार की ना निशानी
द्वेष से भिन्न परिणति पानी
शीघ्र हो मेरे सब दुःख की हानि
माँ सुनाओ वो गाथा सुहानी।।
जो पामर में प्रभुता जगा दे
सारी पामरता क्षण में नसा दे
दीनता हीनता को मिटा दे
और लघुता से हृदय सजा दे
प्रभुता की अमर हो कहानी
माँ सुनाओ वो गाथा सुहानी ।।
Artist: Bal. Br. Shri Sumat Prakash Ji