माँ जिनवाणी ज्ञायक । Maa Jinvani Gyayak

माँ जिनवाणी ज्ञायक बताय दियो रे।
आनंद भयो भारी आनंद भयो रे ।।टेक।।

सविनय शीश नवाय दियो रे।
मैं भीज गयो आहा मैं भीज गयो रे ।।

काल अनादि से भ्रमता फिरता,
जन्म जन्म में बहु दुख सहता ।
अब सब दुख पलाय गयो रे ।।1 ।।

जो प्रमत्त अप्रमत्त नहीं है,
ज्ञायक शुद्ध अभेद सही है ।
स्वयं सिद्ध दर्शाय रह्यो रे ।।2।।

पर अवलंबन छोड़ जु देख,
निज का वैभव प्रत्यक्ष देख ।।
सम्यक रत्नत्रय प्रगटाय रह्यो रे ।।3।।

अब न कामना कोई बाकी,
निज महिमा सर्वोत्तम आँकी ।
निज महिमा में डुबोय रह्यो रे ।।4।।

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