माँ भोगों में नहीं फंसना । Maa bhogon me nahi fasna

माँ भोगों में नहीं फंसना, अब अनंतमती सा होना है।
अपने ब्रह्म स्वरूप को लखकर, ब्रह्मचर्य सु धरना है।।

आठ वर्ष की बाली उम्र में, सती ने ब्रह्मचर्य लिया।
भेदज्ञान अरु समता द्वारा, उपसर्गों को जीत लिया।
ऐसा ही पुरुषार्थ अलौकिक, हे माँ मुझे जगाना है…
अपने ब्रह्म स्वरूप को लखकर, ब्रह्मचर्य सु धरना है।।

चतुर्गति में भ्रमण किया, अब तक बहु दुख उठाए हैं।
अपने को ज्ञायक नहीं जाना, इसीलिए भरमाए हैं।
परिभ्रमण से थकी आज, अब और नहीं भरमाना है…
अपने ब्रह्म स्वरूप को लखकर, ब्रह्मचर्य सु धरना है।।

माँ बनना और मात बनाना, दोनों ही दुख रूप अहो।
संयोगों का मिलना बिछुड़ना, कैसे कहे सुख रूप अहो।
जिनवाणी सुन होश संभाला, नहीं बेहोश अब होना है…
अपने ब्रह्म स्वरूप को लखकर, ब्रह्मचर्य सु धरना है।।

शील ही ओढन शील बिछोना, शील अलौकिक है श्रृंगार।
शील ही उत्तम आभूषण है, शील बिना तन भी बेकार।
शील बाढ़ का पालन करके, ज्ञायक में ही रमना है…
अपने ब्रह्म स्वरूप को लखकर, ब्रह्मचर्य सु धरना है।।

सब संयोग वियोग सहित हैं, भोगों का फल रोग कहा।
अविनाशी का भोग करूं मैं, नहीं संयोग वियोग जहां।
जानूँ नित्य निरंजन ज्ञायक, साँचा सुख अब पाना है…
अपने ब्रह्म स्वरूप को लखकर, ब्रह्मचर्य सु धरना है।।

जग क्या कहता यह नहीं सुनना, जिन वचनों पर धर श्रद्धा।
होय प्रशंसा अथवा निंदा, विचलित नहीं होगी श्रद्धा।
कर्मों की भी चिंता नाहीं, स्वयं स्वतः खिर जाएंगे।
जब ज्ञायक का ध्यान धरेंगे, कैसे वो टिक पाएंगे।
अबद्धस्पृष्टमयी आत्म लख, कर्म जाल को हरना है…
अपने ब्रह्म स्वरूप को लखकर, ब्रह्मचर्य सु धरना है।।

ब्रह्म स्वरूप को ध्याते-ध्याते, हो जाऊं मैं आर्यिका।
विपिन बीच निज आत्म ध्यान धर, नाश करूंगी भव दुख का।
नारी का भव छेद मुनिव्रत धर, शिवपद को पाना है…
अपने ब्रह्म स्वरूप को लखकर, ब्रह्मचर्य सु धरना है।।

Singer - @Atmarthy_Ayushi_Jain

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जय जिनेन्द्र,
मेरी आपसे विनती है कि जैन लोरी का एक collection बनाइए।