लिया ऋषभदेव अवतार, निरत सुरपति ने कियो आके।
निरत कियो जी आके हर्षा के, प्रभूजी के दश भव को दर्शाके।
सरर सरर सर सारंगी तमूरा बाजे, पोरी पोरी मटका के॥
प्रथम प्रकाशी वाने इन्द्रजाल विद्या ऐसी,
आज लों जगत में सुनी न कहीं देखी ऐसी।
आयो वो छबीलो चटकीलो वो मुकुट बंध,
दम्म घेसी कूदो मानो आ कूदो पूनम को चंद ॥
मन को हरत गत फरत प्रभु के पद पूजें धरणी को सिर नाके ॥१॥
भुजों पै चढ़ाये हैं हजारों देवी-देवा ताने,
हाथों की हथेली पे जमाये हैं अखाड़े ताने।।
ता धिन्ना ता धिन्ना किट-किट धिन्ना उनकी प्यारी लागे,
ध्रुमकुट-ध्रुमकुट बाजा बाजे, नाचे प्रभु जी के आगे।
सेवा में रिझावे तिरछी ऐड़ लगावे, उड़ जावे भजन गाके ॥२ ।।
छिन में जा वन्दे वो तो नंदीश्वर द्वीप आप,
पाँचों मेरू वन्दे वो मृदंग पै लगावे थाप।
वन्दे ढाई द्वीप तरेह द्वीप के सकल चैत्य,
पाँचों मेरू वन्दे पूजे आवे नित-नित ॥
आवे वो झपट सबही पै दौड़ा लेने, दम करे छम-छम मनमोहन मुस्क्याके ॥३॥
अमृत की लागी झड़ी बरसी रतन धारा,
सीरी-सीरी चालें पुन बोलें देव जय-जयकारा।
भर-भर झोली बरसावें फूल दे दे ताल,
महके सुगंध चहके मुचक पड़ ताल॥
जन्मे जिनंद भयो नाभि के आनंद, नयनानंद गये भक्ति बतलाके ॥४॥