लघु बोध कथाएं - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Laghu Bodh Kathayen

दृढ़ संकल्प

एक युवक था विकास। दिन में पचास-साठ सिगरेट पीता था। एक बार माँ के साथ आध्यात्मिक एवं नैतिक गोष्ठी में जाना पड़ा। वहाँ भली होनहार से प्रवचनों की ध्वनि कान में पड़ी और वह बाहर से समीप के कमरे में छिपकर सिगरेट भी पीता रहा, साथ ही प्रवचन भी सुनता रहा। सिगरेट कम पी पाता, प्रवचन का रस कुछ अधिक आने लगा। प्रवचनों में नैतिकता, नशा के दुष्परिणाम,जुआ की बर्बादी, कुसंगकी बुराइयाँ, विकृत साहित्य, टी.वी. सीरियल आदि जैसे विषय भी आये।
सुनते-सुनते उसे अंधकारमय भविष्य, संक्लेशमय कुमरण, पत्नी का वैधव्य, बच्चे का अनाथपना प्रत्यक्ष-सा दिखने लगा।
उसने एकान्त में खूब विचार किया और दृढ़ संकल्पपूर्वक सिगरेट का त्याग कर दिया।
घर आया। शरीर में चक्कर, सिरदर्द के कारण नींद न आने से परेशान हुआ। आँखे सूज गयी, परन्तु साहस न छोड़ा। पत्नी ने धैर्य बँधाया, घरेलू उपचार किये। चिकित्स्क का भी सहारा लिया, परन्तु उसने विपरीत विचार नहीं किया।
विकृतियाँ स्वभाव तो हैं नहीं। प्रभुभक्ति और संयम के बल से धीरे-धीरे सामान्य हो गया। परेशानियाँ भी मिट गयीं और नशा भी छूट गया।
इसीप्रकार दिन में १०० गुटखा तक खाने वाले युवक ने, गुटखा का त्याग करके अपना जीवन बचाया।
विवेक, संकल्प-शक्ति, धैर्य, प्रभु भक्ति, सद्विचार, उचित उपचार व सहयोग आदि से बुराइयाँ छूटना सहज सम्भव है। उनका छूटना असम्भव मानकर निराश कदापि न होवें।

4 Likes