लघु बोध कथाएं - ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन्' | Laghu Bodh Kathayen

सफलता मन्त्र-तन्त्रों से नहीं

ग्यारहवीं कक्षा का छात्र शोभित खेल में भाग लेता। बड़ी लगन से अभ्यास करता और प्रथम स्थान प्राप्त करता था, परन्तु उसके चाचा ने एक ताबीज दे दिया था और तब से वह अपनी सफलता का कारण ताबीज को ही समझता था। उसके पिता का स्थानान्तरण हो गया और वह दूसरे स्थान पर विद्यालय में पढ़ने लगा।
एक बार वहाँ भी प्रतियोगिता में उसने भाग लिया, परन्तु उसके पास ताबीज न होने से वह अत्यन्त घबड़ाया। तब उसका मित्र जतिन उसे अपने पिताजी के पास ले गया। उसके पिताजी ने कहा -“तुम लगनपूर्वक अभ्यास करो। ताबीज की व्यवस्था हम कर देंगे।”
शोभित ने मेहनतपूर्वक अच्छा अभ्यास किया, परन्तु प्रतियोगिता के समय निराश हो रहा था। तभी दौड़ा हुआ उसका मित्र आया और छोटा-सा पार्सल उसे दे दिया। वह अत्यन्त हर्षपूर्वक प्रतियोगिता में सम्मिलित हुआ और सफल हुआ।
जतिन के घर जाकर, जब वह धन्यवाद देने लगा तब मित्र के पिताजी ने पार्सल खोलने को कहा। देखने पर उसमें एक कंकड़ मिला। तब उन्होंने कहा -
"बच्चों इसप्रकार अन्धविश्वासों में नहीं पड़ना चाहिए। सफलता ताबीजादि से नहीं ; लगन, विनय और विशुद्धि से मिलती है। "

4 Likes