लघु अभिषेक पाठ
मैं परम पूज्य जिनेन्द्र प्रभु को भाव से वंदन करूँ।
मन वचन काय त्रियोग पूर्वक शीष चरणों में धरूं ।।
सर्वज्ञ केवल ज्ञानधारी की सुछवि उर में धरूँ।
निर्ग्रन्थ पावन वीतराग महान की जय उच्चरूँ ।।
उज्ज्वल दिगम्बर वेश दर्शन कर हृदय आनन्द भरूँ।
अति विनयपूर्वक नमनकर के सफल यह नरभव करूँ ।।
मैं शुद्ध जल के कलश प्रभु के पूज्य मस्तक पर धरूँ।
जलधार देकर हर्ष से अभिषेक प्रभुजी का करूँ ।।
मैं न्हवन प्रभु का भाव से कर सकल भव पातकहरूँ।
प्रभु चरणकमल पखारकर सम्यक्त्व की संपत्ति वरूँ ।।
रचयिता :- श्री राजमलजी पवैय्या